क्या होता है ‘NOTA’? चुनाव में NOTA को सबसे ज्यादा वोट मिले तो क्या होगा?

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चुनाव के दौरान वोटर्स के पास ये भी अधिकार है कि अगर वो किसी भी कैंडिडेट को अपना समर्थन नहीं देना चाहते हैं तो वो NOTA का चुनाव कर सकते हैं

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए मतदाता सात फेज में मतदान करेंगे. 19 अप्रैल से लेकर 1 जून के बीच भारत के मतदाता अपने उम्मीदवार का चुनाव करेंगे. चुनाव के दौरान वोटर्स के पास ये भी अधिकार है कि अगर वो किसी भी कैंडिडेट को अपना समर्थन नहीं देना चाहते हैं तो वो NOTA का चुनाव कर सकते हैं.

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ऐसे में क्या आप जानते हैं कि अगर NOTA दबाने वाले मतदाता की संख्या ज्यादा होती है तब क्या होता है?

क्या है NOTA?

जब किसी वोटर्स को अपने कोई उम्मीदवार योग्य नहीं लगते तब ऐसी परिस्थिति में वोटर्स के पास NOTA का ऑप्शन होता है. NOTA यानी ‘None of the Above’ को लेकर साल 2009 में पहली बार चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में इसका विकल्प रखा था.

पहले जब वोटर्स को कोई उम्मीदवार सही नहीं लगते थे तो वो वोट नहीं डालते थे जिसके चलते देश के सभी मतदाता इसमें हिस्सा नहीं लेते थे.

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कब आया NOTA का विकल्प?

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ नाम की नागरिक अधिकार संगठन ने नोटा का समर्थन करते हुए एक जनहित याचिका दायर की. इसके बाद नोटा को लेकर इलेक्शन कमीशन ने अक्टूबर, 2013 में मतदाताओं के लिए NOTA यानी ‘None of the Above’ के ऑप्शन पर फैसला दिया.

साल 2013 के ही असेंबली इलेक्शन में पहली बार NOTA का विकल्प आया. बता दें कि भारत दुनिया का 14वां ऐसा देश है जिसके EVM में NOTA का विकल्प मतदाताओं के लिए दिया गया है.

NOTA की संख्या कब बढ़ी?

NOTA यानी उम्मीदवारों में से कोई चुनाव नहीं. ऐसे में अगर ज्यादातर मतदाता (वोटर्स) इसका विकल्प चुनते हैं तो इसका असर चुनाव रद्द होने पर नहीं पड़ता. साफ तौर पर बता दें कि भारत में इलेक्शन कमीशन ने राइट तो रिजेक्ट का अधिकार किसी को नहीं दिया है.

नोटा की संख्या बढ़ जाने के बाद भी चुनाव का परिणाम उनके हक में जाएगा जिस उम्मीदवार को ज्यादा वोट पड़े हैं. नोटा सिर्फ गिने जायेंगे जो रिकार्ड्स के लिए हैं.

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